Tuesday, February 4, 2020

Present to Future-. वर्तमान से भविष्य

PRESENT TO FUTURE.. वर्तमान से भविष्य

क्यों सजदे पे सजदा होती,      ये सच्चाई सच में झूठी है।
विषाक्त लता फल फूल रही,        हरियाली क्यों रूठी है।।

तीखे बोल में अपनापन,          बड़बोलापन विषपान हुआ,
सच्चाई का स्वाद है कड़वा इस बात से क्यों अनजान हुआ।
मीठे बोल ज़हर जीवन में,        कुछ तो कड़वा पान तू कर,
संस्कृतियों का सम्मान वो लौटे,       जो मानवता नें लूटी है।।
विसाक्त लता.........।।

इंसान जनम ले मानव में,           अब यही कामना करते हैं,
निज हाँथो से आघात ना हो,       बस यही कामना करते हैं।
खुद से बड़ा खुदा होगा,           जब धरती ये सुरधाम बनेगी,
देव मनुज से डोर जुड़ेगी,         जो कब से अब तक टूटी है।।
विसाक्त लता..........।।

जब गैंरों का हित अपना होगा,   फिर सतयुग वापस आयेगा,
जब मृगतृष्णा छूटेगी मन से,       छ्द्म भाव     भग   जायेगा।
इंसान मेरा आवाहन तुझको,       फिर वो धरा।      बनानी है,
अब दिवास्वप्न सा लगता है,       वेदों की आशा        टूटी है।।
विसाक्त लता.......।।

क्यों सजदे पे सजदा होती,         ये सच्चाई सच में   झूठी है।
विसाक्त लता फल फूल रही,        हरियाली क्यों      रूठी है।।


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Thursday, January 30, 2020

MAZBUR मजबूर

Mazbur. मज़बूर


मैं दुनिया छोड़ दू तेरी मगर मज़बूर इतना हूँ,
मैं दावा छोड़ दू तेरा मगर मज़बूर इतना हूँ।
मुझे मालूम है मेरी मोहब्बत का सफर यारो,
तू मेरी हो नहीं सकती मैं तेरा हो नहीं सकता।।

तू सागर है मोहब्बत का मैं अम्बर हूँ ख्यालों का,
छितिज पर आ गया हूँ मैं मगर मजबूर इतना हूँ,
तू मुझको छू नहीं सकती मैं तुझको पा नहीं सकता।।

तू मंज़िल रोशनाई है मेरी हर एक राहों की,
मेरा हर रास्ता जुड़ा तुझसे, मगर मज़बूर इतना हूँ।
तू उठकर आ नहीं सकती मैं चलकर जा नहीं सकता।।

तू मेरी छोड़कर दुनियां कहीं औरों की जन्नत है,
मैं पाना चाहता दिल से मगर मज़बूर इतना हूँ।
तू मुझको मिल नहीं सकती मैं तुझको पा नहीं सकता।।

मैं तेरी आखँ की नजरें तू मेरी आँख का काजल,
बहुत नजदीक हूँ तुझसे मगर मज़बूर इतना हूँ।
तू मुझतक आ नहीं सकती मैं तुझतक आ नहीं सकता।।

तू मेरी रूह है मुझमें मैं तेरे दिल की धड़कन हूँ,
तू मुझमें है मैं तुझमें हूँ मगर मजबूर इतना हूँ।
तू मुझबिन मर नहीं सकती मैं तुझबिन जी नहीं सकता।।

मोहब्बत धार दरिया की किनारें इसके हम दोनों,
मैं संग तेरे सफर तक हूँ, मगर मज़बूर इतना हूँ।
तू मुझसे मिल नहीं सकती मैं तुझसे मिल नहीं सकता।।

तू मेरी आँख का झरना जलन मैं तेरे दिल की हूँ,
झलकते साथ दोनों हैं मगर मज़बूर इतना हूँ।
तू भिगों सकती नहीं मुझको मैं सुखा तुझको नहीं सकता।।

मुझे मालूम है मेरी मोहब्बत का सफर यारो,
तू मेरी हो नहीं सकती मैं तेरा हो नहीं सकता।।


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Wednesday, January 29, 2020

HUMANITY..... मानवता

HUMANITY... मानवता


क्यों सजदे पे सजदा होती,        ये सच्चाई सच में झूठी है।
विसाक्त लता फल-फूल रही,         हरियाली क्यों रूठी है।।

तीखे बोल में अपनापन,             बड़बोलापन विषपान हुआ,
सच्चाई का स्वाद है कड़वा , इस बात से क्यों अनजान हुआ।
मीठे बोल जहर जीवन में,           कुछ तो कड़वा पान तू कर,
संस्कृतियों का सम्मान वो लौटे,         जो मानवता नें लूटी है।।
विसाक्त लता............।।

इंसान जनम ले मानव बनकर,     अब यही कामना करते हैं,
निज हांथों से आघात ना हो,        बस यही कामना करते हैं।
खुद से बड़ा खुदा होगा जब,            धरती ये सुरधाम बनेगी,
देव मनुज से डोर जुड़ेगी,           जो कब से अब तक टूटी है।।
विसाक्त लता............।।

जब गैंरों का हित अपना होगा,   फिर सतयुग वापस आयेगा,
फिर मृगतृष्णा टूटेगी मन से,             छद्म भाव भग जायेगा।
इंसान तेरा आवाहन तुझको,              फिर वो धरा बनानी है,
जो दिवास्वप्न सा लगता है,                  वेदों की आशा टूटी है।।
विसाक्त लता ............।।


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Monday, January 27, 2020

Gazal..Jakhmi Dil... जख्मी दिल

ग़ज़ल.... Gazal

 JAKHMI DIL.....जख्मी दिल


हम प्यार के मारे दीवानों का, हाल तो यूँ ही होता है।
अधरों पे  मुस्कान सजाये,     दिल तो यूँ ही रोता है।।
हम प्यार के मारे..........।।
महफ़िल में   बेगानों से,     बीच शमां परवानों से।
अपनें प्यार के   सानों से,   दिल तो यूँ ही रोता है।।
अधरों पे मुस्कान......।।

चंचल शोख   अदाओं से,  वादी में उड़ती हवाओं से।
लहरों को छूती फ़िज़ाओं से, दिल तो यूँ ही रोता है।।
अधरों पे मुस्कान.......।।

मंदिर के भगवानों से, मस्जिद से उठती दुवाओं से।
गिरिजाघर से गुरुद्वारों से, दिल तो यूँ ही रोता है।।
अधरों पे मुस्कान.......।।

अपनों से बेगानों से,  घर-आँगन से खलियानों से।
गांव के   हर बागानों से,      दिल तो यूँ ही रोता है।।
अधरों पे मुस्कान.......।।।

हर सावन से हर पतझड़ से, बादल के गरजते कड़-कड़ से।
शीत लहर की     ठिठुरन से,       दिल तो   यूँ ही रोता है।।
अधरों पे मुस्कान........।।

हर  आहट से    घबराहट से,   तपती धूप तरावट से।
आराम से और थकावट से,     दिल तो यूँ ही रोता है।।
अधरों पे मुस्कान.........।।

घायल दिल की हर आहों से, फूलों से पटी हर राहों से।
लिपट-लिपट गल बाहों से,    दिल तो   यूँ ही रोता है।।
अधरों पे मुस्कान..........।।

उम्मीदों से अरमानों से,  आराम के हर सामानों से।
हर साथ से हर यारानों से,     दिल तो यूँ ही रोता है।।
अधरों पे मुस्कान..........।।
हम प्यार के मारे दीवानों का, हाल तो यूँ ही होता है।।


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Sunday, January 26, 2020

TERA SAATH... तेरा साथ

TERA SAATH... तेरा साथ


हर     शाम   सुहानी     होती है,        मदमस्त जवानी होती है।
हर     लम्हा        मयखाना हो,         जब  तू  बाहों में  होती है।।
हर शाम...................।।

सदियां बीतें घड़ियों की तरह,   अरमां खिलतें कलियों की तरह।
मैं उन्मुक्त गगन का  पंछी,      तू मंज़िल की गलियों की तरह।
फूलों में फ़ना    खुशबू जैसे,   जब  तू      साँसों  में     होती है।।
हर शाम................।।


आंखों में बसी   काजल की तरह,  सर को ढकती आँचल की तरह।
धक धक करती दिल की धड़कन,धड़कन में बसी जीवन की तरह।।
गलियाँ गुल से    गुलज़ार बनें,       जब  तू      राहों में     होती है।।
हर शाम.............।।

उगते सूरज सा   ख्वाब है  तू,     नींदों में  बसे    सपनों की तरह।
गैंरों सी भरी  इस महफ़िल में,  तुम मिलते हो   अपनों की तरह।।
कुछ और  ना   दिखता नज़रों से, जब तू    आखों में       होती है।।
हर शाम..............।।

मेरा सावन तू     हरियाली तू,      बरसे काले मेघों की तरह।
अम्बर में बसा मेरा चाँद है तू, पर्वत में रमे दरिया की तरह।।
दिल में गूंजे       आवाज़ तेरी,         जब तू बातों में होती है।।
हर शाम............।।


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KAVITA कविता : प्रिये

KAVITA. .. कविता

प्रिये


मैं पतझड़ का         मौसम हूँ,          तुम बसंत का गीत प्रिये।
मैं विरह अग्नि की तपती ज्वाला, तुम मिलन नाद संगीत प्रिये।।
मैं विछिप्त      एक दीवाना हूँ,      पागल कहती दुनिया सारी।
मैं प्रेम डगर का पथिक तेरा,         तुम मंज़िल मेरी मीत प्रिये।।
मेरी हर एक    आस   श्वास तुम,       मेरे हर जज़्बात हो तुम।
मेरे आत्मसात का सत्व हो तुम, तुम जीवन रण का जीत प्रिये।।
मैं चकोर सा।      प्यासा जीवन,    जहाँ मेघ बढ़ाये प्यास मेरी।
प्यासे कंठ की    तुम सरिता हो,        तुम स्वाति की बूंद प्रिये।।
मैं उजड़ा           एक वीराना हूँ,      खंड-खंड    खंडहर हूँ मैं।
मेरे बंज़र से।       इस जीवन में,  तुम सावन की बरसात प्रिये।।
मैं तपते दिन की    धूप धरा पर,   तुम उषाकाल की लाली हो।
मैं रात अमावस          काली हूँ,      तुम पुर्णिम का चांद प्रिये।।
मैं घाट तेरा           तुम घटा मेरी,   मैं सावन तुम बरसात मेरी।
मैं जीवन की          आधारशिला, तुम जीवन भर का गीत प्रिये।।


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Saturday, January 25, 2020

Gazal. दर्द-ए-गम

Gazal.  दर्द-ए-गम


अपनी आंखों से आँचल भिगोता हुआ,
                              दर्द में डूबकर अब नहाता हूँ मैं।
रहम से सितम कैसे मुझपर हुआ,
                          दांस्ता अपनें दिल की बताता हूँ मैं।।
अपनी आंखों से............।।

जब अकेला था दिल में कई ख्वाब थे,
                        उनकों हासिल करूँ ऐसे जज़्बात थे।
दूर तक ढूढती थीं निगाहें जिसे,
                           कैसे आकर वो खोया बताता हूँ मैं।।
अपनी आँखों से...........।।

जब मिली मुझको मेरा जहाँ मिल गया,
                        सूखे तरुवर पे जैसे कमल खिल गया।
मिली हर खुशी ख्वाब पूरे हुये,
                           दास्तान-ए-सितम अब बताता हूँ मैं।।
अपनी आंखों से.............।।

बूंद नींबू की जैसे पड़ी दूध पर,
                             मातम में खुशियां बदल सब गयीं।
मेरा नूर-ए-नज़र जब फ़ना हो गया,
                               उसे रात-दिन अब बुलाता हूँ मैं।।
अपनी आँखों से.................।।

कैसे आएगी सदियां गुजर सी गयी,
                               अम्बर ये धरती बदल सब गयीं।
कहर-ए-जुदाई को दिल में लिये,
                        उसकी सजदा के अब गीत गाता हूँ मैं।।
अपनी आँखों से..............।।


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