Wednesday, January 29, 2020

HUMANITY..... मानवता

HUMANITY... मानवता


क्यों सजदे पे सजदा होती,        ये सच्चाई सच में झूठी है।
विसाक्त लता फल-फूल रही,         हरियाली क्यों रूठी है।।

तीखे बोल में अपनापन,             बड़बोलापन विषपान हुआ,
सच्चाई का स्वाद है कड़वा , इस बात से क्यों अनजान हुआ।
मीठे बोल जहर जीवन में,           कुछ तो कड़वा पान तू कर,
संस्कृतियों का सम्मान वो लौटे,         जो मानवता नें लूटी है।।
विसाक्त लता............।।

इंसान जनम ले मानव बनकर,     अब यही कामना करते हैं,
निज हांथों से आघात ना हो,        बस यही कामना करते हैं।
खुद से बड़ा खुदा होगा जब,            धरती ये सुरधाम बनेगी,
देव मनुज से डोर जुड़ेगी,           जो कब से अब तक टूटी है।।
विसाक्त लता............।।

जब गैंरों का हित अपना होगा,   फिर सतयुग वापस आयेगा,
फिर मृगतृष्णा टूटेगी मन से,             छद्म भाव भग जायेगा।
इंसान तेरा आवाहन तुझको,              फिर वो धरा बनानी है,
जो दिवास्वप्न सा लगता है,                  वेदों की आशा टूटी है।।
विसाक्त लता ............।।


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