Sunday, January 26, 2020

KAVITA कविता : प्रिये

KAVITA. .. कविता

प्रिये


मैं पतझड़ का         मौसम हूँ,          तुम बसंत का गीत प्रिये।
मैं विरह अग्नि की तपती ज्वाला, तुम मिलन नाद संगीत प्रिये।।
मैं विछिप्त      एक दीवाना हूँ,      पागल कहती दुनिया सारी।
मैं प्रेम डगर का पथिक तेरा,         तुम मंज़िल मेरी मीत प्रिये।।
मेरी हर एक    आस   श्वास तुम,       मेरे हर जज़्बात हो तुम।
मेरे आत्मसात का सत्व हो तुम, तुम जीवन रण का जीत प्रिये।।
मैं चकोर सा।      प्यासा जीवन,    जहाँ मेघ बढ़ाये प्यास मेरी।
प्यासे कंठ की    तुम सरिता हो,        तुम स्वाति की बूंद प्रिये।।
मैं उजड़ा           एक वीराना हूँ,      खंड-खंड    खंडहर हूँ मैं।
मेरे बंज़र से।       इस जीवन में,  तुम सावन की बरसात प्रिये।।
मैं तपते दिन की    धूप धरा पर,   तुम उषाकाल की लाली हो।
मैं रात अमावस          काली हूँ,      तुम पुर्णिम का चांद प्रिये।।
मैं घाट तेरा           तुम घटा मेरी,   मैं सावन तुम बरसात मेरी।
मैं जीवन की          आधारशिला, तुम जीवन भर का गीत प्रिये।।


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