Friday, January 10, 2020

Search - खोज

          Search (खोज)


इस कफस आस्ना में मुख्तार-ए- मुकाम खोजता हूँ।
फरिश्तों की बस्ती में दर बदर एक अदद इंसां खोजता हूँ।।
इस कफस........…....!!

मुख़ातब करूँ क्या जमीं आसमां को,
                   या लम्हों के काबिज़ करूँ कारवां को ।
अर्से आजम के काबिल तो कोई मिले,
                   या भुला दू सदा के लिए इस जहां को।।
मिद हत के  काबिल मैं रुह-ए- खुदा खोजता हूँ।।
इस कफस.............!!

इंतिसार हर एक लम्हा हुआ जिन्दगी का,
                    ना मुख़ातिब मोहब्बत हुआ बंदगी का।
सुकून-ए- दरख़्तों के काविश में मैं,
                     पुस्तेदस्त काविश लकीर जिंदगी का।।
जो मताए आख़िरत को महफ़ूज़ करे वो हुनर खोजता हूँ।।
इस कफस.............!!

पजार-ए-मुसीबत को जो तोड़ दे,
                        जो बिगड़ी हुई को सही मोड़ दे।
कफ्स मिद हद के काबिल है होता वही,
                         क़फ़स आसना की जो जड़ तोड़ दे।।
दैजूर-ए-सफ़र में भटका हुआ नेकी का नूर-ए-जहां खोजता हूँ।।
इस कफस...............!!


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