Wednesday, January 8, 2020

Sun-Shine

 कब दिल की गर्मी ज्वाला बनकर, इन आँखों से बरसेगी।
कब जज्बात प्रखर होकर चेहरे से , उषा अर्क से चमकेगी।।
है भान नही हे भानु तुझे, तमस बढ़ाती तपिस तेरी,
शीतलता क्षीण निरंतर दिल की,जड़ता उत्कर्ष की गति मेरी।
कब सारंग सलिल अंजुल पर, भरकर धरती पर बरसेगी।।
संग्राम छिड़ा हर पल हर छन,अपना वर्चस्व बढ़ाने की,
दानवता प्रतिपल यत्न है करती, अपना आकार बढ़ाने की।
 ऊर्ध्वलोक हो तपित निरंतर, धरती को झुलसाता है,
सुधा सहित हो कृष्ण मेघ कब पावस बनकर बरसेगी।।

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