World (संसार)
है जन्म यहीं है मरण यहीं,चिंताओं का हरण यहीं।
एकल से द्विजता धरती,मर्यादाओ का वरण यहीं।।
हर मनुज धरा पर पग पग पर,
हर पग रखता है सम्हल सम्हल,
गिरता उठता हर बार यहीं,
नव चेतन अंकुर उदय यहीं, अस्त यही अभ्युदय यहीं,
मुस्कान यहीं सम्मान यहीं ममता का है मान यहीं,
निज जीवन की निजता रखती वनिता की है आन यहीं।
तिरस्कार की कुत्सितकुंठा,
पूज्य भाव का भान यहीं।
कालकूट से निर्मित औसधि,
गरल सुधा बन जाता है,
फिर इंसा क्यो इंसानो से मिलकर,
इंसान नही बन पाता है।
नफरत से है नफरत पोषित सनेह नही बन पाता है,
वासनाओ की आंधी में फसकर इंसान बदल जब जाता है
फिर सोचो क्या वो यही जीव जो इंसा से जाया जाता है,
इसी दुर्दान्त दुर्गति की गति को पाने इंसा बनकर आता है।
बस दृस्टि का कोण बदल दो, फिर है सारे स्वर्ग यही।
निज अंतर्मन में झांक के देखो
इस ब्रमांड के सारे लोक यहीं।।
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